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क्यों बढ रही है सिजेरियन डिलीवरी (Cesarean Delivery)!!!

आज से काफी वर्षो पहलें जब डिलीवरी होती थी तो कहा जाता था कि माॅं को
नया जीवन मिला है। उस समय हर एक हजार पर 140 महिलाओं तथा बच्चों
की डिलीवरी के दौरान मौत हो जाती थी। अक्सर किसी कारणवश गर्भ में बच्चें
की मृत्यू हो जाने पर बच्चें को काट कर नार्मल डिलीवरी द्वारा निकालना पडता था। इस स्थिति में मां के जीवन को भी खतरा रहता था। आॅपरेशन की सुविधा प्राप्त न होने पर कभी. कभी जच्चा की जान बचानें में मुश्किल हो जाती थी।

सामान्य डिलीवरी के लिये यह आवश्यक है कि महिला की शारीरिक बनावट इस
प्रकार की हो जिससे बच्चें को मां के गर्भ से बाहर आनें में कोई रूकावट न हो।
परन्तु आजकल की महिलाओं में ऐसा हो पाना सम्भव नही होता है इसका कारण
है उनका अपने शरीर के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होना तथा शारीरिक श्रम की कमीं इसके अलावा ज्यादा स्लिम ट्रिम होने के चक्कर में डायटिंगए जिसके कारण वे आन्तरिक रूप से कमजोर हो जाती है। एवं घरों में भी को खास मेहनत वाला काम भी नही रहता है। क्योंकि अधिकांश घरों में किचन में खाना खडें हो कर बनाते है झाडू पोछें के लिये नौकर होता ही है
और अगर नही भी होता है तो भी अधिकांश घरों में खडें हो कर ही किया जाता है।
इन्डियन टायलेट की जगह पर कम्बोड का प्रयोग किया जाता है इन सब बातों की
वजह से कूल्हें की हड्डी सॅंकरी रह जाती है और इस सॅकरेपन के कारण नार्मल
डिलीवरी में परेशानी का सामना करना पडता है। इतना ही नही आज के समय में
छोटें परिवार ही होते है और ऐसे में दम्पत्ति एक या दो बच्चें चाहतें है इसीलियें वे
किसी भी तरह का रिस्क नही लेना चाहतें है और चाहते है कि बच्चा शतप्रतिशत
शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ हो। जहां तक तकनीकी पक्ष की बात है तो
निम्न स्थितियों में सिजेरियन जरूरी हो जाता है।

माॅं से संबंधित परेशानी
शारीरिक बनावट का सॅकरा होनाए साधारण डिलीवरी के दौरान दर्द का असमान्य
तरीके से होनाए दर्द होने के बावजूद बच्चेदानी का मुॅह न खुलना। अन्य कारणों में
गर्भावस्था के दौरान अधिक रक्तचाप या अनियमित डायबिटीज का होना इसी प्रकार
बच्चें की नाल या प्लेसेन्टा का बच्चेंदानी के मुॅह पर होना या गर्भ में जुडवा बच्चों
की सही पोजीशन नही होना या बच्चें की नाल का किसी कारण वश डिलीवरी के
पहले ही बाहर आ जाना।

यदि पहला बच्चा आपरेशन द्वारा हुआ हो और दूसरा बच्चा 3 साल से पहले गर्भ
में आ जायें तो पुराने टाॅकों के स्थान पर बच्चेदानी के फटने का डर भी रहता है।

बच्चें से संबंधित परेशानियाॅं
बच्चें का गर्भ में उल्टा या तिरछा होनाए बच्चें का बहुत अधिक कमजोर होना बच्चें
के दिल की धडकन कम या अधिक या अनियमित होनाए बच्चें के गलें में नाल का
फसा होना जिसकी वजह से बच्चें को सांस लेने में परेशानी होना।

आज के युग मे बढती समस्याओं के धन अभाव अच्छी शिक्षा का प्रयास और
बढते प्रतिस्पर्धा के इस युग में हर मां बाप अपनी संतान को शतप्रतिशत शारीरिक
व मानसिक रूप से स्वस्थ देखना चाहता है इसके अलावा महिलायें भी डिलीवरी
का दर्द सहन नही करना चाहती है व फिगर को खराब नही करना चाहती है ऐसे
मे सीजेरियन ही इसका विकल्प है जिससे कि मां व बच्चा दोनो ही सुरक्षित रहतें है
और अब इस युग में सिजेरियन डिलेवरी के कारण जच्चा एंव बच्चंे का मृत्यु.दर
कम होता जा रहा है।

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